Ekta Singh

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लेखनी कहानी -19-Jun-2023

                  पापा की छाँव 
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उनके पैरों को अपने हाथों से दबाना चाहती थी।
अपनी हाथों से उस पीड़ा को हरना चाहती थी।

उम्र के इस पड़ाव पर भी मजबूत दिख रहे हैं।
मेरे पापा के पाँव बहुत सुडौल लग रहे हैं। 

वह दर्द से पाँव उठाकर नहीं चल पा रहे हैं।
लेकिन आज भी कर्मठता से अंबर छू रहे हैं।

वह घुटने के दर्द से भी इतने बेचैन नहीं होते हैं।
जितना कि पुराने जख्मों से जला करते हैं ।

सूरज जैसा तेज उनकी चेहरे पर दिखाई देता है।
मानो उसके सिद्धांतो  जीवन में अपनाए बैठे हैं। 

अपनी ईमानदारी की तलवार हाथो में रखते हैं।
वे अपने सपनों को बुनकर आँखों में सजाते हैं।

पापा ने मेहनत कर सबको  देना ही सिखाया है।
अपने पापा के उसूलों को मैंने भी गाँठ बांधा है।

पापा की दुआओं की बारिश से हमेशा भीगी रहुँ।
उनकी छांव में हाथों को फैलाए ऐसे ही बैठी रहुॅ।







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3 Comments

kashish

18-Jul-2023 02:35 PM

Nicely written

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Alya baby

20-Jun-2023 06:55 AM

खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

20-Jun-2023 05:03 AM

बहुत खूब

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